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आंबेडकर जंयती : अनुसूचित जाति के खिलाफ अपराध के मामलों में हुआ इजाफा

आंबेडकर अपनी 127वीं जयंती के मौके पर भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितना संविधान के निर्माण के बाद और दलितों के संघर्ष के दौरान थे. दलितों और पिछड़ों को वोट बैंक समझने वाले सभी दल आज आंबेडकर को अपना मार्गदर्शक और प्रेरणा पुंज कहते नहीं अघाते हैं. एनडीए सरकार में साल 2014 से 2016 के बीच अनुसूचित जाति (SC) यानी दलितों के खिलाफ अपराध के मामलों में इजाफा हुआ है. अनुसूचित जाति के खिलाफ यूपीए सरकार के दौरान साल 2011 से 2013 के बीच एक लाख छह हजार 782 मामले सामने आए, जबकि एनडीए सरकार के दौरान साल 2014 से 2016 के बीच एक लाख 19 हजार 872 मामले सामने आए.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक साल 2014 से 2015 के बीच अनुसूचित जाति के विरुद्ध अपराधों के खिलाफ में 4.3 फीसदी की कमी आई, जबकि साल 2015 से 2016 के बीच इसमें 5.5 फीसदी का इजाफा देखने को मिला. अगर राज्यों की बात करें, साल 2016 में अनुसूचित जाति के खिलाफ 10 हजार 426 मामले यानी 25.6 फीसदी अपराध के मामले उत्तर प्रदेश में सामने आए.

वहीं, साल 2014 से 2016 के बीच अनुसूचित जनजाति (ST) के खिलाफ अपराधों में 3.8 फीसदी की कमी देखी गई. साल 2015 में इस समुदाय के विरुद्ध अपराध में आठ फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि साल 2016 में 4.6 फीसदी का इजाफा हुआ. इसके अलावा राजस्थान में अनुसूचित जनजाति (ST) के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक मामले सामने आए, जबकि पश्चिम बंगाल में अनुसूचित जनजाति के विरुद्ध सबसे कम मामले सामने आए. 12.9 फीसदी अपराधों के साथ राजस्थान शीर्ष पर है, जबकि 1.6 फीसदी अपराधों के साथ पश्चिम बंगाल सबसे नीचे पायदान पर है.

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