खबरगुरु (रतलाम) 12 जुलाई। भगवान शिव का नाम गंगा है विभूति (भस्म) यमुना है और रुद्राक्ष सरस्वती है। इन तीनों के संयुक्त रूप ही त्रिवेणी है। जिसके मस्तक पर विभूति है,अंग में रुद्राक्ष है और मुख में शिव नाम हैं। उस मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। यह बात श्री कालिका माता मंदिर प्रांगण में मंगलवार को श्री शिव आराधना महोत्सव के तहत तपो मूर्ति वितराम शिरोमणि परम पूज्य स्वामी निर्मल चैतन्य पुरी जी महाराज ने उपस्थित श्रद्धालुओं से कही। कालिका माता सेवा मंडल ट्रस्ट, श्री शिव आराधना महोत्सव समिति द्वारा श्रावण मास के दौरान 4 जुलाई से 30 अगस्त तक विभिन्न धार्मिक आयोजन किए जा रहे हैं। इसी के अंतर्गत श्री शिव आराधना में शिव पार्वती विवाह प्रसंग पर वहां मौजूद श्रद्धालु नाचते झूमते दिखाई दिए।
भगवान शिव-पार्वती के विवाह का प्रसंग
स्वामी जी ने कथा में भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह प्रसंग सुनाया। भगवान् शिव ने पार्वती जी के प्रेम की परीक्षा लेनी चाही इसके लिए पार्वती जी से स्वयं के बारे में नकारात्मक बातें कहलवाई। पार्वती जी से कहा गया, “आप जिसके लिए इतनी तपस्या कर रही हो, वे तो बड़े उदासीन हैं, अजीब सा वेश धारण करते हैं, कपालों की माला पहनते हैं, ना उनका कोई कुल है और ना कोई घर-बार, पूरे शरीर पर सांपों को लपेटे रहते हैं, आखिर ऐसा पति मिलने से तुम्हें कौन सा सुख मिलेगा? बात सुनकर पार्वती जी ने कहा, “मेरा तो एक ही मन है और उसमें केवल भगवान शिव ही बस चुके हैं। मैं तो उनके लिए अपना सब कुछ हार चुकी हूं, तो अब मैं उनके गुण-दोषों को क्यों देखूं।स्वयं भगवान शिव भी सौ बार मना करें, तो भी मैं करोड़ों जन्मों तक यही कहूंगी कि मैं केवल भगवान शिव से ही विवाह करूंगी, नहीं तो कुमारी ही रहूंगी।” इस तरह पार्वती जी हर परीक्षा में पूरी तरह सफल रहीं। बड़ी धूमधाम से उनका विवाह भगवान शिवजी के साथ हुआ।
चौदह मुखी रुद्राक्ष शिव का स्वरूप
स्वामी ने बताया कि मनुष्य की सम्पूर्ण इच्छाओं की पूर्ति भगवान शिव की भक्ति आराधना से प्राप्त हो जाती है। स्वामी जी ने रुद्राक्ष की महिमा वर्णन करते हुए कहां की रुद्राक्ष स्पर्श से, दर्शन से और रुद्राक्ष की माला के जप करने से जीव के पाप, ताप ,संताप नष्ट हो जाते हैं एक से चौदह मुखी रुद्राक्ष और उनके धारण से प्राप्त होने वाले फल के विषय में वर्णन करते हुए स्वामी जी ने कहा कि एक मुखी रुद्राक्ष साक्षात शिव स्वरूप है, उसको धारण करने वाला व्यक्ति समस्त प्रकार के सुख को प्राप्त करता है। दो मुखी रुद्राक्ष देवदेवेश्वर स्वरूप कहा गया है, तीन मुखी रुद्राक्ष ब्रह्मा विष्णु महेश का प्रतीक है, चार मुखी रुद्राक्ष साक्षात ब्रह्मा का प्रतीकहे पाँच मुखी रुद्राक्ष कालाग्नि रुद्र है छह मुखी रुद्राक्ष कार्तिक का रूप है सात मुखी रुद्राक्ष अनग, आठ मुखी अष्ट मूर्ति भैरव नो मुखी रुद्राक्ष कपिलमुनि ऎवम् नवदुर्गा का स्वरूप् दस मुखी भगवान विष्णु का स्वरूप् ग्यारह मुखी रुद्र स्वरूप बारह मुखी आदित्य स्वरूप तेरह मुखी विश्वदेव चौदह मुखी परम शिव स्वरूप माना गया है। क्रमशः 1 मुखी से 14 मुखी तक रुद्राक्ष धारण करने का फल वह मोक्ष संपूर्ण कामनाओं की प्राप्ति संपूर्ण पापों से मुक्ति संपूर्ण विधाओं की प्राप्ति पापों से मुक्ति एवं संपूर्ण दारिद्र नाश करने वाले पूर्ण आयु प्रदान करने वाले सर्वत्र विजय को प्राप्त करने वाला और मंगलमय भाव को प्राप्त करने वाला रुद्राक्ष धारण करने वाले पुरुष को देखकर भगवान शंकर विष्णु दुर्गा गणेश सूर्य तथा अन्य देवता भी प्रसन्न हो जाते हैं।
रुद्राक्ष को धारण करते समय भगवान शंकर की प्रतिमा के सामने स्थित रहकर भस्म को धारण करके पंचाक्षर मंत्र का जप करने वाला मनुष्य भगवान का पूर्ण भक्त कहलाता है। भस्म रुद्राक्ष धारण किए बिना भगवान शंकर की कोई पूजा करता है तो उसको अभीष्ट फल की प्राप्ति नहीं होती है। जिन रुद्राक्ष को कीड़ों ने खंडित कर दिया हो या जो टूटा हुआ हो गोल ना हो, उभरा हुआ दाना ना हो इसे रुद्राक्ष को धारण नहीं करना चाहिए ।