अयोध्या हिंदुस्तान की वो नगरी, जो मंदिर-मस्जिद विवाद के साए में तीन चश्मों से देखी जा रही है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर की बेंच इस केस की सुनवाई कर रहे हैं. इसे लेकर ऐतिहासिक दस्तावेजों और आंखों देखी बयान हैं. इस नजरिए से देखें, तो अयोध्या में मंदिर-मस्जिद जैसा विवाद होना ही नहीं चाहिए.
मुगलिया इतिहास की तारीखें ये बताती है कि बाबर मार्च 1526 में हिंदुस्तान आया था. मात्र 12 हजार सैनिकों के साथ उसने पानीपत में दिल्ली के बादशाह इब्राहिम लोदी के साथ जंग लड़ी थी. 20 अप्रैल को इब्राहिम लोदी का कत्ल करने के एक हफ्ते बाद दिल्ली में उसकी ताजपोशी हुई. उसके आयोध्या आने की बात 1528 में की जाती है. राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की बात इसी साल की जाती है, लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेजों की माने तो अयोध्या में राम मंदिर तो बाबर के आने के बाद मौजूद था.
अयोध्या रीविजिटेड के लेखक किशोर कुणाल का कहना है कि 1631 में मंदिर देखा, तुलसीदास ने भी लिखा. इस तरह के प्रमाण है कि 1640 तक मंदिर था.
सिब्बल की दलील- अभी भी HC में रखे गए सभी दस्तावेज SC में जमा नहीं हुए हैं, सिब्बल ने कहा- 19000 से ज़्यादा पन्नों के दस्तावेज इतने कम समय मे कैसे जमा करवाए गए. अगर ऐसा हुआ भी है तो मामले से जुड़े पक्षों के पास अभी ये दस्तावेज नहीं पहुँचे हैं.