खबरगुरू (उज्जैन) 4 मार्च। रतलाम सम्राट विक्रमादित्य की प्रामाणिकता इस बात से सिद्ध है कि उनका कार्यकाल ईसा की पहली शताब्दी का बताया जाता है याने लगभग 2100 वर्षों के बाद भी लोकमानस के दिलोदिमाग़ में न्यायप्रिय न्यायाधीश , साहसी सम्राट और दयालु संरक्षक के रूप में उनकी पहचान विराजमान है। उक्त विचार रतलाम के शास्त्री नगर निवासी एडवोकेट एवं पूर्व उप संचालक अभियोजन कैलाश व्यास ने उज्जैन में आयोजित विक्रमोत्सव 2025 के समापन अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रकट किए।
व्यास ने बताया कि विक्रमादित्य को राज्य की विरासत अपने पूज्य भाई भृतहरि से प्राप्त हुई थी और विरासत में उन्हें उच्च आदर्श भी मिले , भृतहरि का श्लोक है जिसमें उन्होंने कहा है कि” न्यायविद एवम् विद्वान की प्रशंसा हो निंदा , वह सौ वर्ष जीवित रहे या तत्काल मृत्यु हो जाए किन्तु न्याय के मार्ग से उसे कभी भटकना नहीं चाहिए। वर्तमान न्याय व्यवस्था में दंड का सुधारात्मक सिंद्धांत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, समानता का अधिकार, महिलाओं एवं बच्चों को विशेष संरक्षण की अवधारणा भी उसी न्याय व्यवस्था में परिलक्षित होती है ।
प्रारंभ में विक्रमोत्सव आयोजन समिति की और से कैलाश व्यास का शॉल, श्रीफल व स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मान किया गया । सम्मान आयोजन समिति की और से विनोद शर्मा , दिनेश पण्डिया, रवीन्द्रसिंह कुशवाह आदि ने किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व जिला न्यायाधीश आर. एस. चुण्डावत ने विक्रमादित्य कालीन , साहित्य की कथाओं से तत्कालीन व्यवस्था पर प्रकाश डाला।
कार्यक्रम में पूर्व जिला जज एस. सी. पाल ,पूर्व जिला जज जे. सी. सुनहरे,अभिभाषण एवम विधि के शोधार्थी भी मौजूद थे। आभार जिला विधिक सेवा अधिकारी चंद्रेश मंडलोई ने प्रकट किया।