“संस्कृति का रक्षक” (व्यंग्य कविता) |
पता है आपको ? वर्तमान नारा है, बेटी बचाओ ओर बेटी पढ़ाओ जी ,देश समाज का नारा है, हम आप सभी जानते है, लेकिन, हमे समाज के लिए, बेटी के साथ “आदर्श बहू ” भी चाहिए, बहू -? बिल्कुल बहू, सीता सावित्री,पार्वती लक्ष्मी सी, के गुणों वाली सुंदर बहू, मै पहरेदार हूँ भाई, भारतीय संस्कृति का पहरेदार, मार्केटिंग के लिये चाहिए, स्वीटी,स्मार्ट ,क्यूट , बोल्ड एंड ब्यूटी फुल, मार्केटिंग का सवाल है यार, “धन्धा” भी तो करना है, रुपये भी कमाने है, देखो यार,अपन उसूल वाले है, गलत काम करते नही, संस्कृति के पहरेदार जो है , मेरे दोस्त, संस्कृति अपनी जगह , धन्धा अपनी जगह, आज की परिभाषा ही ये है, शादी के पहले “लिव रिलेशनशिप” शादी के बाद बलात्कार और रेप, चलते रहने दो बरसो केस, क्या बोले तुम,? कोई केस नही, ठीक ही तो है यार, चलता रहेगा समाज और देश, क्यो की मै हूँ “पहरेदार “! —––————————– |
इंदु सिन्हा, साहित्यकार, रतलाम