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रतलाम: मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर शासन को कर रहे गुमराह, उड़ा रहे नियमों की धज्जियां, डीन ने कहा ऐसे डॉक्टरों पर लिया जाएगा कड़ा एक्शन

🔴 शासकीय मेडिकल कॉलेज में कार्यरत डॉक्टर एनपीए के बाद प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर सकते इसे लेकर नियम साफ- डीन डॉ. जितेंद्र गुप्ता

डॉ. हिमांशु जोशी खबरगुरु (रतलाम) 29 जनवरी। म.प्र. शासन चिकित्सा शिक्षा विभाग अंतर्गत कार्य करने वाले डॉक्टर रतलाम में शासन के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं। निजी प्रेक्टिस नहीं करने का प्रमाण-पत्र उपलब्ध कराने तथा शासन से एनपीए (नॉन प्रेक्टिस अलाउंस) लेने के बावजूद भी निजी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। नियम की बात करें तो जिन डॉक्टरों ने एनपीए नहीं लिया वे सिर्फ अपने आवासों पर ही निजी प्रैक्टिस के तहत परामर्श दे सकते हैं। शासकीय मेडिकल कॉलेज के डाक्टरों का नाम खुले आम निजी अस्पताल में लिखा जाने लगा है। लगता है किसी को शासन के नियमों और आदेशो से कोई फर्क नहीं पड़ता या कहे तो शासन का ड़र ही खत्म हो गया। आम जनता एवं गरीब जनता को अब लगने लगा है कि शासकीय मेडिकल कॉलेज अथवा अस्पतालों में जो डॉक्टर सेवाएं देते हैं वही डॉक्टर जब निजी अस्पताल अथवा क्लीनिक पर परामर्श देने आते हैं तब सेवाएं बेहतर होती है। शासन की सुविधाओं का भद्दा मजाक बन रहा है। शासन को गुमराह किया जा रहा है। आम जनता का विश्वास शासन की योजनाओं से उठता जा रहा है। यही कारण है कि जनता शासकीय मेडिकल कॉलेज अथवा अस्पताल में जाने की बजाय निजी अस्पताल अथवा क्लीनिक का रुख करने लगी है। इसके लिए आम जनता की जेब ढीली होती है और हजारों रुपए निकल जाते हैं। अब आम जनता यह पीड़ा किसको सुनाएं ? अब जनता इसका जवाब आने वाले चुनाव में ही दे सकती है। जब जिम्मेदार अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटते हैं और इस प्रकार के कार्य को होने देते हैं तब इसका खामियाजा आम जनता को ही भुगतना पड़ता है।

प्रायवेट प्रैक्टिस कर रहे डॉक्टर ले रहे सरकारी भत्ता

जिन डॉक्टरों ने एनपीए (नॉन प्रेक्टिस अलाउंस) ले रहे है,वे किसी भी निजी नर्सिंग होम, हॉस्टिपल में चिकित्सकीय सेवाएं प्रदान नहीं कर सकता है। एनपीए के बाद प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं कर सकते। शासन ने इस संबंध में सभी से एफीडेविट मांगे थे। एफीडेविट देने के बाद भी मेडिकल कॉलेज के कई डॉक्टर एनपीए लेकर भी निजी संस्थाओं में सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। ज्यादातर प्राइवेट अस्पताल मरीजों से खचाखच भरे रहते हैं। इनमें अधिकांश अस्पतालों में मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर ही प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। लोग निजी अस्पताल, क्लीनिक में इलाज के लिए मजबूर हैं। जिसका बोझ मरीजों की जेब पर पड़ रहा है।

पार्ट टाइम परामर्श और उपचार से हो रही वेतन से तीन गुना तक इनकम 

जानकारी के अनुसार निजी अस्पताल में एक दिन में एक मरीज को देखने के 400-600 और ऑपरेशन के 15 हजार रुपए तक शासकीय डॉक्टरों को मिलते हैं। अनुमान लगाएं तो महीने के दो लाख से तीन लाख रुपए पार्ट टाइम सेवाएं देकर कमा रहे हैं। और कुछ डॉक्टर्स तो चार से पांच लाख पार्ट टाइम में कमा रहे है। शासन से मिलने वाला वेतन तो कुछ के लिए नाम मात्र ही है। निजी अस्पतालों और क्लीनिक से मिलने वाला शुल्क भी नगद अथवा किसी रिश्तेदार के नाम पर लिया जाता है जिससे इनकम टैक्स भी बच जाता है और सरकार को हजारों करोड़ का चूना लग जाता है। सरकार लाख योजनाएं निकाल ले पर जब इस तरीके के कार्य होंगे तो सारा बोझ आम जनता पर पड़ेगा और योजनाएं हवा में उड़ जाएगी। यह सब खुलेआम हो रहा है और सभी को दिख रहा है पर जिम्मेदार यह सब देखकर आंखें मूंद लेते हैं।

प्राइवेट प्रैक्टिस में पीछे नहीं है मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर

मेडिकल कॉलेज के डॉक्टर निजी प्रैक्टिस में पीछे नहीं हैं। शहर के कई अस्पतालों में मेडिकल कॉलेज के कई डॉक्टर निजी अस्पताल और क्लीनिक में प्रैक्टिस कर रहे हैं। नियमानुसार मेडिकल कॉलेज में तैनात डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस की अनुमति नहीं है। बावजूद इसके कई डॉक्टर एक ओर तो सरकार से एनपीए का पैसा ले रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्राइवेट प्रैक्टिस करके भी कमाई कर रहे हैं। डीन एक ओर ऐसे डॉक्टर्स जो शासन के नियमों की धज्जियां उड़ा रहे उन पर कार्रवाई की बात कर रहे है पर सवाल यह उठता है कि जब ये खुले आम हो रहा है तो जिम्मेदार क्यो अपनी आंखे बंद किए बैठे है? कुछ डाक्टर्स ने तो अपने 2 आवास भी दिखा दिए है जिससे आवासिय प्रैक्टिस दिखाने में आसानी हो। जानकारी के अनुसार सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर भी निजी अस्पताल और क्लीनिक पर सेवाएं दे रहे हैं। रतलाम सिविल सर्जन के अनुसार जिला अस्पताल के सभी डॉक्टर एनपीए सुविधा का लाभ नहीं ले रहे हैं और कोई भी डॉक्टर निजी प्रैक्टिस नहीं कर रहे। अब यह तो देखने वाले देख रहे हैं। हम शीघ्र ही नई रिपोर्ट के साथ पार्ट-2 लेकर आ रहे हैं जिसमें आम जनता तक जिम्मेदारों की सच्चाई सामने लाएंगे।

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जानिए क्या है नियम

म.प्र. उपचर्यागृह तथा रूजोपचार संबंधी स्थापनाएँ अधिनियम 1973 और 1997 में यह प्रावधान है कि जिले के सरकारी डॉक्टर्स (स्वास्थ्य विभाग) निजी प्रैक्टिस अपनी ड्यूटी अवधि के बाद सिर्फ आवासों पर ही कर सकते हैं। इसमें भी वे केवल परामर्श ही दे सकेंगे तथा खुद या परिजनों के नाम पर निजी क्लीनिक, नर्सिंग होम या निजी अस्पताल नहीं चला सकते। आवासों के अलावा अन्य किसी निजी संस्थान में परामर्श सेवाएँ भी नहीं दी जा सकती हैं।

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स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने डॉक्टरों के लिए कड़ी चेतावनी को किया जारी

पिछले दिनों उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज में बयान के बाद शनिवार शाम स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने डॉक्टरों के लिए कड़ी चेतावनी जारी कर दी। अपनी प्रेस रिलीज में स्वास्थ्य मंत्री ने चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि सरकारी डॉक्टर अगर निजी प्रैक्टिस करते या नर्सिंग होम में अपनी सेवाएं देते पाए जाएंगे तो उनको बख्शा नहीं जाएगा।

सवाल उठता है

क्या मध्यप्रदेश में भी जिम्मेदार जनता के हित में कोई कार्रवाई करेंगे ?

क्या मध्यप्रदेश के सीएम रतलाम में आम जनता के दर्द को समझेंगे?

क्या जिम्मेदार शासन के इस नियमों को डाक्टर्स पर सही से लागू करवा पाएंगे?

हमारी कोशिश है कि आम जनता की तकलीफों को जिम्मेदार तक पहुचाएंगे।

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मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ जितेन गुप्ता ने बताया कि शासन के स्पष्ट आदेश हैं कि सरकारी अस्पतालों एवं मेड़ीकल कॉलेज में कार्यरत नियमित डॉक्टर निजी प्रैक्टिस नहीं कर सकते। जो एनपीए का लाभ ले रहे हैं वह किसी भी निजी अस्पताल में अपनी सेवा नहीं दे सकते और जो एनपीए का लाभ नहीं ले रहे हैं ऐसे डॉक्टर भी सिर्फ अपने निवास स्थान पर परामर्श सेवाएं दे सकते हैं। ऐसे डॉक्टर जो नियमों को नहीं मान रहे उनके विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाएगी मेरे द्वारा सख्त एक्शन लिया जाएगा। फरवरी में फुल फ्लैश ओपीडी शुरू हो रही है और डॉक्टर को इस ओर ध्यान देना चाहिए। मेड़िकल कॉलेज में पचास प्रतिशत से ज्यादा डॉक्टर एनपीए सुविधा का लाभ ले रहे है। ऐसे में अगर कोई डॉक्टर नियमों का उल्लंघन कर रहे है तो मै कड़ा एक्शन लुंगा।

डॉ. जितेन्द्र गुप्ता- डीन

 शास. मेडिकल कॉलेज, रतलाम

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