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“वैरागी शिव देते अपने भक्तों को वैभव”- डॉ. रीना रवि मालपानी द्वारा लिखित लेख

“वैरागी शिव देते अपने भक्तों को वैभव”- डॉ. रीना रवि मालपानी द्वारा लिखित लेख

खबरगुरु। 

वैरागी शिव देते अपने भक्तों को वैभव

महादेव शिव शंभू वैसे तो स्वयं वैराग्य को अपनाते है, पर वे स्थिर लक्ष्मी एवं वैभव को प्रदान करने वाले देव है। भक्तवत्सल शिव को पूजना तो सदैव ही शुभ होता है, पर श्रावण मास तो भगवान शिव के नाम ही किया जाता है। जल की धार से ही प्रसन्न होने वाले आशुतोष को श्रावण में निश्चित ही अपनी विशेष मनोकामना के लिए स्मरण किया जा सकता है। कोरोना काल में जब जनमानस को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में श्रद्धापूर्वक भोलेनाथ के दारिद्रय दहन शिव स्त्रोत की प्रतिदिन आराधना से आर्थिक संकट से धीरे-धीरे मुक्ति मिल सकती है। श्रावण मास में इसके वाचन से शिव की असीम कृपा प्राप्त हो सकती है एवं साधक को त्रिपुरारी की भक्ति की प्राप्ति हो सकती है।

दारिद्रय दहन शिव स्त्रोत अर्थात दरिद्रता का दहन करने वाला। दहन का तात्पर्य होता है भस्म करना या जलाना। दरिद्रता के बारे में शास्त्रों में भी कहा गया है की भला भूखा व्यक्ति कौनसा पाप नहीं कर सकता, अर्थात गरीबी जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। शास्त्रों में आदिनाथ शिव को सबसे सरल देव की संज्ञा दी गई है। भोले शंकर का यह स्त्रोत सुख-समृद्धि और अपार धन-सम्पदा प्रदान करता है। चन्द्रशेखर के अधिकतर स्त्रोत आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित है, परंतु इस अद्भुत स्त्रोत की रचना महर्षि वशिष्ठ द्वारा की गई है। विष्णुप्रिया देवी लक्ष्मी को चंचला कहा गया है, अर्थात वह एक जगह अधिक समय नहीं ठहरती, परंतु इस स्त्रोत के वाचन से और शिव की असीम भक्ति से साधक को स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है एवं दरिद्रता का धीरे-धीरे नाश हो जाता है। वैसे तो लक्ष्मी प्राप्ति हेतु श्रीसूक्त एवं कनकधारा स्त्रोत भी रचित है परंतु शिव की आराधना से भी लक्ष्मी को प्राप्त किया जा सकता है। यदि साधक पूर्ण भक्ति भाव से इस स्त्रोत का त्रिकाल पाठ करे तो उसे अथाह वैभव का सुख प्राप्त हो सकता है। आइये इस श्रावण मास में सम्पूर्ण विश्व के कल्याण के लिए भगवान भोले नाथ की दारिद्रय दहन शिव स्त्रोत से पूर्ण श्रद्धाभाव से स्तुति करें।

विश्वेश्वराय नरकार्णवतारणाय कर्णामृताय
शशिशेखराय धारणाय कर्पूरकांति धवलाय जटाधराय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय…।1।

गौरी प्रियाय रजनीश कलाधराय कालान्तकाय
भुजंगाधिप कंकणाय गंगाधराय गजराज विमर्दनाय
दारिद्रय दु:ख दहनाय नम: शिवाय…।2।

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